Uttarakhand : कड़वा अतीत छोड़ उत्तरकाशी मिशन बना मिसाल

 

 

उत्तरकाशी (एजेंसी)। उत्तराखंड में टनल हादसों में राहत एवं बचाव कार्य का पुराना इतिहास बहुत बेहतर नहीं रहा है। इन सबको पीछे छोड़ इस बार उत्तरकाशी मिशन सिलक्यारा(Uttarkashi Mission Silkyara) पूरी तरह सफल रहा। टनल अभियान में 16 दिन बाद जाकर सफलता मिली। सभी 41 मजदूरों को बचा कर एक लंबी लकीर खींची गई।

उत्तरकाशी सिलक्यारा टनल हादसा 17वें दिन जाकर कामयाब हो पाया। इस अभियान में राज्य से लेकर केंद्र की एजेंसियों के समय रहते मोर्चा संभालने से बड़ी कामयाबी हाथ आई। सुरंग में फंसे 41 लोगों में से सभी को सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया। ये अभियान की बड़ी सफलता रही। जबकि पूर्व में उत्तराखंड में जो भी टनल हादसे हुए, वहां बड़ी संख्या में लोगों को अपनी जान तक गंवानी पड़ी।

दिवाली के दिन 12 नवंबर को हुए हादसे के बाद 13 नवंबर से श्रमिकों तक सरकार ने खाने और पीने का इंतजाम कर दिया था। यही इस अभियान की सबसे बड़ी सफलता रही। सिलक्यारा उत्तरकाशी में घटना के कुछ घंटों के भीतर सरकारी सिस्टम मौके पर पहुंच गया था। हालांकि बचाव अभियान 48 घंटे बाद ही शुरू हो पाया था, लेकिन आपूर्ति समय पर शुरू हो गई थी। इसके कारण सुरंग के भीतर श्रमिकों का हौसला बना रहा। पाइप के सहारे ही पहले श्रमिकों से बातचीत तक हुई। इससे उनमें हिम्मत और बढ़ती चली गई। यही इस अभियान की सफलता की सबसे बड़ी वजह रही।

उत्तराखंड में टनल हादसों का रहा पुराना इतिहास: टिहरी बांध में दो अगस्त 2004 की रात को टनल टी थ्री के धंसने से बड़ा हादसा हुआ। इस Uttarkashi Mission Silkyara हादसे में 29 लोगों की जान गई। इसी तरह सात फरवरी 2021 को चमोली के रैणी ऋषि गंगा में आई बाढ़ के कारण रैणी ऋषि गंगा परियोजना में काम करने वाले 105 लोगों की मौत हो गई थी। यहां भी टनल में फंसने से मौत हुई थी। टनल खोलने में तीन दिन का समय लगा। इस हादसे में टनल में फंसे 105 लोगों के शव तो मिल गये थे जबकि 204 लोग लापता हो गए थे।

देश-दुनिया के सफल रेस्क्यू में अब सिलक्यारा भी शामिल

उत्तरकाशी में 41 श्रमिकों को 17वें दिन सकुशल रेस्क्यू किए जाने के साथ ही सिलक्यारा देश-दुनिया के बड़े बचाव अभियानों में शामिल हो गया। यहां देश की आपदा राहत टीमों ने अपनी योग्यता और क्षमता का लोहा मनवाया। यह देश का अभी तक का सबसे सफल रेस्क्यू अभियान माना जा रहा है। इस अभियान के दौरान हमारे संसाधन, आपदा प्रबंधन और इंजीनियरिंग कौशल को कड़ी परीक्षा से गुजरना पड़ा।

 

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