
सीमावर्ती क्षेत्रों में डेमोग्रॉफी बदलाव सामरिक एवं सुरक्षा की दृष्टि से एक गंभीर चुनौती सिद्ध हो सकती है। उत्तर पूर्व के क्षेत्रों में आज हिंदू आबादी पूर्णतः अल्पसंख्यक हो चुकी है। बिहार, बंगाल और बांग्लादेश सीमा का त्रिकोण जिसको चिकननेक कहा जाता है, वहां डेमोग्रॉफी तेजी से परिवर्तित हो रही है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में भी तेजी से बदलाव हुआ है जो सांस्कृतिक और धार्मिक दृष्टि से भी कई गंभीर प्रश्न उत्पन्न करता है। इसका नियंत्रण सरकार के लिए सरकार को प्रभावी कदम उठाने होंगे क्योंकि ऐसे बदलावों से कोस्टल एरिया भी अछूता नहीं है।
यह बातें सेंटर फॉर पॉलिसी स्टडी के निदेशक पद्मश्री डॉ जतिंदर कुमार बजाज ने कही।
वह शुक्रवार को गंगा शोध केन्द्र द्वारा आर्यावर्त संस्था एवं देवभूमि विचार मंच (प्रज्ञा प्रवाह) के संयुक्त तत्वावधान में दून विश्वविद्यालय में “जनसांख्यिकी असंतुलन : वर्तमान और भविष्य हिमालयी राज्यों के विशेष सन्दर्भ में विषय पर आयोजित कार्यशाला को बतौर मुख्य वक्ता संबोधित कर रहे थे। बजाज ने बताया कि जनसंख्या बदलाव को ऐतिहासिक दृष्टि से देखें तो इसकी शुरुआत मुगलकाल से हुई, जो लगातार बढ़ता गया। ब्रिटिश शासनकाल में यह और तेजी से बढ़ा। विभाजन के समय इसमें थोड़ी गिरावट आई लेकिन उसके बाद यह स्थिति तेजी से बदलती रही, बढ़ती रही।
उन्होंने कहा कि भारतीय धर्मों (हिन्दू, सिक्ख, जैन, बौद्ध) की प्रजनन दर मुस्लिम जनसंख्या की प्रजनन दर के अनुपात में लगातार बहुत घट रही है। मुस्लिम जनसंख्या का अधिकांश घनत्व पश्चिमी उत्तर प्रदेश, पूर्वी बिहार, झारखंड का कुछ भाग, पश्चिम बंगाल का उत्तर-पूर्वी भाग, असम का पश्चिमी एवं दक्षिण-पूर्वी भाग में है।
इसाई जनसंख्या की बहुतायत एवं प्रतिशत वृद्धि दर में पूर्वोत्तर के राज्य, केरल एवं तमिलनाड़ू प्रमुख हैं। भारत का स्थानीय परिवेश पूर्व से ही स्वशासन पर कार्य करने वाला और व्यवसाय में मात्र कृषि केंद्रित नहीं रहा है। उन्होने डेमोग्रॉफी बदलाव के एक सदी के आंकड़े पेश किए।
इससे पूर्व कार्यक्रम का शुभारंभ राष्ट्रगान व अतिथियों को स्मृति चिह्न भेंट कर स्वागत किया गया। कार्यक्रम के प्रथम सत्र की अध्यक्षता दून विश्वविद्यालय कुलपति की प्रो० सुरेखा डंगवाल ने की। उन्होंने कहा कि जनसंख्या असंतुलन एक बड़ी गंभीर समस्या है। जनसंख्या असंतुलन के आँकड़ों का वैज्ञानिक रूप से निरीक्षण एवं अध्ययन किया जाना अत्यंत आवश्यक है। जनसंख्या असंतुलन लोकतंत्र के लिए एक बड़ा खतरा है।
विशिष्ट वक्ता सुरेश सुयाल रहे। कार्यक्रम में भगवती प्रसाद ‘राघव’ (क्षेत्र संयोजक, उत्तरप्रदेश व उत्तराखण्ड, प्रज्ञा प्रवाह) एवं डॉ देवेन्द्र भसीन (उपाध्यक्ष, उच्च शिक्षा उन्नयन समिति) रहे। कार्यक्रम संयोजक प्रो० रीना चन्द्रा ने मंच संचालन किया।
डॉ० अंजलि वर्मा (प्रान्त संयोजक, देवभूमि विचार मंच) ने कहा कि प्रज्ञा प्रवाह राष्ट्रीय पुनर्जागरण, भारतीयता के भाव को बढ़ाने का मार्ग प्रशस्त करता है। भारत की सांस्कृतिक चेतना को वैश्विक स्तर पर प्रकट करना इसका प्रमुख कार्य है। उत्तराखंड में चार शोध केंद्रों के माध्यम से पर्यावरण, पलायन, जनसंख्या असंतुलन, महिला एवं युवा इत्यादि विषयों पर कार्य किया जा रहा है।
डॉ० देवेंद्र भसीन ने कहा कि इस्लाम का होता विस्तार संपूर्ण विश्व के लिए बड़ा खतरा है। जनसंख्या असंतुलन लंबे समय से साजिश के तहत किया जा रहा है। उत्तराखंड में सरकार ने 400 से अधिक अवैध मजारे ध्वस्त की हैं। साथ ही 7500 हेक्टेयर से अधिक भूमि इसी तरह के अवैध कब्जे से मुक्त कराई है।
सुरेश सुयाल ने कहा कि जनसंख्या असंतुलन का प्रभाव उत्तराखंड में बढ़ रहा है। इसके समाधान के लिए शासन-प्रशासन के साथ सामाजिक सजगता के साथ कार्य करना अत्यंत आवश्यक है। दैशिक शास्त्र के सूत्र अधिजनन अर्थात् नई पीढ़ी का सदृढ़ विकास कैसे हो, अध्यापन अर्थात् नई पीढ़ी कैसे समाज-योग्य बने एवं अधिगमन अर्थात् नई पीढ़ी किस प्रकार जीवन में ब्रह्मचर्य, वानप्रस्थ, युद्ध आदि विषयों का प्रयोग कर सनातन संस्कृति को सशक्त करे, इस पर कार्य होना चाहिए।
गंगा शोध केंद्र के निदेशक डॉक्टर विकास सारस्वत ने डेमोग्राफिक में परिवर्तन व पलायन पर अपने विचार रखें। द्वितीय सत्र की अध्यक्षता देवभूमि विचार मंच के अध्यक्ष डा़ पृथ्वीधर काला ने की। उन्होंने डेमोग्राफिक परिवर्तन से वर्तमान और भविष्य के खतरों से रूबरू कराया।
कार्यक्रम का संचालन प्रोफेसर डॉक्टर रीना चंद्रा ने किया।
कार्यशाला में गंगा शोध केन्द्र के उप निदेशक डॉ रवि दीक्षित, डॉ एचएच पुरोहित, विशाल वर्मा, प्रो आरपी ममगाई, डॉ राजेश भटट, एकता त्रिपाठी, डॉ सुनेना रावत, प्रो विजय श्रीवास्तव, प्रो सुनित कुडियाल, प्रो एचडी भटट, डॉ देव जैसाली, डॉ बसुंधरा उपाध्याय रुद्रपुर सहित प्रदेश भर से बुद्धिजीवी और बड़ी संख्या में शोध छात्र-छात्राएं मौजूद रहे।