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सिलक्यारा निर्माणाधीन टनल में फंसे मजदूरों पर होगी बाबा बौख नाग की कृपा।

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उत्तरकाशी। उत्तरकाशी के सिलक्यारा निर्माणाधीन टनल (Silkyara Tunnel) में रेस्क्यू ऑपरेशन को अब 14दिन हो गये हैं लेकिन कोई सफलता हाथ नहीं लगी है,और वहीं दूसरी ओर बाबा बौख नाग से भी प्रार्थना की जा रही है। बतादें कि पौराणिक शास्त्रों में जनश्रुतियो के अनुसार महाभारत काल के समय कौरव पांडओ का युद्ध समाप्ति के बाद भगवान श्री कृष्ण शांति के लिए पहाड़ो कि तरफ रूख किया,भगवान सीधे अपने सारथी में सवार होकर बौख पर्वत उच्च स्थल पर पहुंचे जहां अब बाबा बौख नागराजा मंदिर बना है कुछ समय भगवान श्री कृष्ण ने बौख डांडा में बीताया जिसे बौख टिब्बा के नाम से अब जाना जाता है।

पूज्य प्रभुदासबापू की स्मृति में तलगाजरडा में विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन

उस समय कृष्ण भगवान ने बौख टिब्बा पर अपनी बांसुरी बजाई (Silkyara Tunnel)और बांसुरी की धुन से एक नाग अति पवित्र हुआ उसी काल की उत्पत्ति हुई जिसे बासुकिया नाग से जाना गया है जैसे भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी बासुरी की धून को बजाना बंद किया वैसे वह नाग लुप्त हो गया जहां वह नाग लुस हुआ वहा शिवलिग स्थापित हो गया और भगवान श्री कृष्ण उस बासुकिया नाग में समा गये बाद में यही नाग बौख पर्वत पर प्रकट होने पर इसी नाग का नाम बौख नाग पड़ा बौख टिब्बा मे जिस स्थल पर नाग लुप्त हुआ वहा शिव लिग स्थापित होने से इसे बाबा नाम से प्रसिद्धी मिली और इस दिव्य नाग देवता को बाबा बौख नागराजा देवता के नाम से जाना गया।

कुछ दिन बाद वहा से भगवान श्रीकृष्ण ने दूर एक पर्वत दिखा जो उन्हें वह पर्वत स्थल सुदंर लगा जिस पर्वत नाम सेम पर्वत था भगवान श्रीकृष्ण सीधे सेम पर्वत में चल दिये उस समय से भगवान श्री कृष्ण चरण पड़ने से यह बौख डांडा स्थल बौख टिब्बा नाम जाना जाने लगा,बौख टिब्बा पर स्वर्ग लोक की मात्री/परियां आज भी अठखेलियां खेलती है जिन्हे बौख मात्री नाम से भी जाना जाता है।

कई वर्षों बाद इस महिमा के फलस्वरूप बौख टिब्बा के निचले हिस्से एवं सुरूवती आबादी इलाके में भगवान बासुकी नाग की मूर्ति नासुका कफनोल में प्रकट हुई, जहां एक विशाल देवदार का पेड़ भी है इस विशाल काय देवदार पेड़ को भी बौख देवता का ही प्रतीक माना जाता है।

जनश्रुतियों पौराणिक मान्यता है कफनोल के नसुका नामक तोक में एक बैंकल का भी पेड़ था, इसी स्थान से लगा हुवा बाडकानाम स्थान है वहां के राजा का नाम बाडका राजा था उस राजा की बहुत सारी गाय थी जिसमे एक गाय जंगल मे चुगंते हुए रोज दिन के लगभग 12 बजे उस स्थान पर चली जाती थी और बैंकल के पेड के नीचे अपना सारा दूध निकाल लेती थी।

जब राजा को इस बात का पता चला तो राजा ने उस पेड नीचे खुदाई कराई खुदाई के समय खुदाई औजार एक धातु पर लगा वैसे अंदर से आवाज आई देखते देखते मूर्ति दिखाई दी जो मूर्ति चारो तरफ सांप के गोल घेरे से लिपटा हुआ था जिस पर राजा द्वारा पूजा अर्चना करके नाग देवता लुप्त हो गये मूर्ति को पास के गांव कपनोल लाया गया उसी रात को स्वपन में राजा को बाबा बौख नाग ने विशाल रूप दिखाया सारी घटना क्रम बताते हुये कहा कि मेरी पूजा अर्चना बद्रीनाथ धाम के पुजारी अर्थात चमोली जिले के डिम्मर गांव के डिमरी पुजारी द्वारा इस देवता की पूजा हेतु चेताया गया।

रंवाई घाटी के भाटिया गांव बसे डिमरी जाति के पंडितो को भी इसी पूरे घटनाक्रम का मुख्य हिस्सा माना जाता है, पूजा का विधान तब से आज तक चल के आ रहा है… बौख टिब्बा तीर्थ स्थल से गंगा मां-यमुना मां दोनो के दर्शन होते है साथ ही रात्री के समय अनेकों दूरस्थ स्थानों का विहंगम दृश्य दिखते है लेकिन इस पौराणिक स्थल पर रात्रि को हर कोई नही रुक सकता है। रंवाई के पंडितो युगपुरूषो के अनुसार बौख टिब्या डांडा पर बसा चौकी डुगू, धुन कुण्ड, रोपयन सौड, चंदोगी थात, चपूचौरी थातर, मोराटू थातर, बड थातर, नरका आदि देव स्थलो में बौख नाग की मात्रीयो/परियो की पूजा होती है जो सुंदर बुग्याल स्थल भी हैं।

सेम नागराजा मेले को सेम पर्वत और बाबा बौख नागराजा मेले को बौख पर्वत पर एक ही तिथि 11 गते मांगसीर मे लगता है जो की एक साल बौख टिब्बा में और एक साल सेम पर्वत में बारीबारी से हर तीसरे साल दोनो देवता नागराजाओ का मेला लगता है जहा हजारों की सख्या में खातु दर्शन के लिए जाते है बाबा बौख नाग देवता के देवदूत चेडू महाराज है जो उनके हर समय साथ अगवानी चलते है आज के समय में बौख नागराजा देवता के चार प्रमुख थान है जो पट्टी मुगरसंती में कपनोल गांव बड़कोट पट्टी में भाटिया गांव,कसेरू गांव एवं नंदगांव में हैं इन चारों विशाल थानों में भाटिया गांव के डिमरी जाति के पंडित मात्र ही पूजा कर सकते हैं।

आज हाल में बौख टिब्बा पर्वत के ठीक नीचे से लगभग पांच किलोमीटर की सुरंग अलवेदार प्रोजेक्ट के अनुरूप चल रही है लेकिन इस सौ करोड़ों के प्रोजेक्ट का जब लगभग चार साल पहले श्री गणेश किया गया था तब भाटिया गांव के पुजारियों द्वारा इस सुरंग के पास पूजा की जाती थी जो की कंपनी द्वारा ही सफल कार्य हेतु की जाती थी,इसी समय बाबा बौख नाग के मुख्य पुजारियों द्वारा एक मुख्य मांग उठाई गई थी उनका मानना था कि आजतक जब राड़ी सड़क मार्ग से जनता गुजरती है।

तो राडी में बौख नाग मंदिर में हरएक लोग श्रीफल, दक्षिणा आदि चढ़ा कर हर वर्ष हजारों यात्री पूजा अर्चना अपनी सफल यात्रा एवं मनोकामना पूर्ण होने हेतु करते है लेकिन टरनल के बनने के बाद राड़ी के इस बौख मंदिर में भक्त नहीं पंहुचेंगे जिसके लिए टरनल के सुरूवत में ही बौख नाग देवता का भव्य मंदिर बनाने हेतु कंपनी से भाटिया गांव के पुजारियों द्वारा अनुरोध किया गया था।

लेकिन कंपनी ने कुछ समय मात्र तक बाबा बौख की पूजा करवा कर टाल दिया, कुछ समय बाद न तो टरनल में पूजा की गई और नाही बाबा बौख नाग महाराज के मंदिर हेतु कोई भरोसा दिया गया,आज सिलकियारा के पास इतनी बड़ी घटना के दो कारण बताए जा रहे हैं एक है घटिया गुणवक्ता युक्त कार्य दूसरा बाबा बौख नाग महाराज का मंदिर,आज दुनिया के सबसे कुसल टरनल भू वैज्ञानिक ऑस्ट्रेलिया के R.Ranold उत्तरकाशी पहुँच चुके है और काम करने से पहले छेत्रपाल देवता बौख नाग देवता जी की पूजा कर सर जमीन पर लगा कर प्रणाम किया है,देवभूमि मे रहने की वजह से वो भी जानते है।

इस भूमि से देवताओं की मान्यता कितनी है यह वह अनेकों टरनल कार्यों के समय आई बाधाओं से जानते हैं, बेहराल 6 इंच का पाइप अंदर तक पहुंच गया है मजदूरों को अब पका हुआ भोजन मिल पायेगा, R.Rnold ने साफ कहा है उनको निकालने के हाथ से भी मिट्टी खोदनी पड़ सकती है,6 दिन का उन्होंने टाइम मांगा है पर अब पक्का हुआ भोजन पोंछने लगा है तो अब उतनी दिकत नही है उनके आने से सबकी जान मे जान आयी है क्यो की वो हिमालय की मिट्टी-मिट्टी जानते है साथ ही यहां की देवीय शक्ति को भी जानते हैं और टनल मे उन्हें बहुत बड़ी महारथ हासिल है। आशा है बाबा बौख नाग महाराज की कृपा से यह कार्य सफता पूर्वक सकुशल पुरा होगा।

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